लघुकथा:विप्लव
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©®Pawan Kumar Srivastava/written on 10th Aug 2018.
अभिज्ञान एक जाति विशेष द्वारा किये जा रहे आंदोलन वाले दिन अपनी कार में बैठ अम्बानी हॉस्पिटल के लिये निकल तो पड़ा था पर उसे मुसलसल यह डर साले जा रहा था कि कहीं इस दुःसाहस का उसे खामियाजा न भुगतना पड़ जाए।
'ओय ऐड़े अपनी गाड़ी फुंकवायेगा क्या ?'
किसी गुज़रते राहगीर ने यह कहकर उसका डर और बढ़ा दिया ।पर चूंकि उसकी गर्भवती बीबी हॉस्पिटल में एडमिट थी,उसका हॉस्पिटल पहुँचना बेहद ज़रूरी था।
ऊहापोह में फंसे अभिज्ञान को तभी रास्ते पर आंदोलनकारियों का एक बैनर दिखा और इसके साथ हीं उसके दिमाग में एक युक्ति कौंधी।उसने अपनी कार के फर्स्ट एड बॉक्स से सैलो टेप निकालकर उस बैनर को अपने कार के बोनट पर चिपका दिया और चल पड़ा अपने गंतव्य की ओर।रास्ते में मूक दर्शक बने पुलिस वालों के सामने चक्काजाम और तोड़-फोड़ करती आंदोलनकारियों की भीड़ दिखी, पर उत्पातियों ने अभिज्ञान को अपने आंदोलन का शिरकतदार समझ उसे जाने दिया।बल्कि कुछ आंदोलनकारियों ने उसे देखकर बड़े जोश से नारा लगाया'जय फलना' ।अभिज्ञान ने भी हाथ उठाकर 'जय फलना' कहा और निर्विध्न हॉस्पिटल की ओर बढ़ चला।काफ़ी फासले तक अभिज्ञान की यह तरक़ीब क़ामयाब रही पर एक ज़गह पुलिसवालों ने उसे रोक लिया और थाने चलने को कहने लगे।
चित्र साभार- गूगल
'अरे साहब मैं आंदोलनकारी नहीं हूँ,मैं तो उनकी जात का भी नहीं हूँ।यह बैनर मैंने उनको चीट करने के लिए लगा रखा है ताकि मैं हॉस्पिटल तक पहुँच सकूं जहाँ मेरी बीबी को लेबर पेन हो रहा है।मेरा वहाँ पहुंचना बहुत ज़रूरी है,मानवता की ख़ातिर कृपया आप मुझे जाने दें।'
अभिज्ञान 15-20 मिनट तक पुलिसवालों से चिरौरी करता रहा पर पुलिस वाले अंगद के पांव की तरह अपनी बात पे अड़े रहे।तभी अभिज्ञान के मोबाइल पर उसकी माँ का कॉल आ गया जो हॉस्पिटल में उसकी बीबी के साथ थी।
'तू अभी तक पहुँचा क्यों नहीं?बाय द वे मुबारक़ हो तू बेटे का बाप बन गया।'
माँ ने जब यह ख़बर सुनाई तो अभिज्ञान ख़ुश भी हुआ और इस ख़ूबसूरत मौके को चूक जाने पर दुखी भी।
'मैंने तो इसका नाम भी सोंच लिया है'सुशांत'।'
माँ ने जब ऐसा कहा तो अभिज्ञान झुंझलाते हुए बोल पड़ा-
'नहीं माँ इसका नाम विप्लव रखना'
'क्यों?'
'विप्लवकारी देश में जो पैदा हुआ है।'
-पवन कुमार ।

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