Sunday, 29 July 2018

मृत्यु भोज

{मृत्युभोज की निस्सारिता पर लिखी कविता}
कविता
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©®Pawan Kumar Srivastava/written on 29th June.

मृतक के शोक में आ गई थी रंगत,
जब मृत्युभोज जीमने आई थी पंगत।

लोग छककर पकवान खा रहे थे,
और मृतक के कसीदे गा रहे थे।

अहा पूरियां बड़ी स्वादिष्ट थीं,
शायद उनमें मृतक की आत्मा आविष्ट थी।

अहा रसगुल्ला बड़ा रसीला था,
शायद वह मृतक के मीठे आंसूओं से गीला था।

दस्तरख़ान पर रखी थी
मेवायुक्त श्वेतवर्णी खीर,
ओह मृतक बेचारा था 
कितना सौम्य व धीर!

चावल पर डली जब
तेजपत्ते की छौंक वाली दाल,
दिल में हुआ तब
मृतक के मरने का मलाल।

कुछ वक़्फे बाद जब लोग
चले गये मारते डकार,
वहाँ पड़े मृतक की तस्वीर से 
उतार लिया गया हार।

वाह क्या उत्तम अद्भुत मृत्युभोज था!
मृतक की तस्वीर पर भी संतुष्टि का ओज था।

-पवन कुमार श्रीवास्तव
चित्र साभार- गूगल

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