भूत का निर्णय
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©®Pawan Kumar Srivastava/written on 10th Oct 2018.
गांव के अत्यंत हीं सम्पन्न और प्रभुत्वशाली व्यक्ति हरिहर बाबू के यहाँ
ससुराल से लौटी उनकी नवविवाहिता बेटी का स्वर्णहार चोरी क्या हुआ,घर बाहर सर्वत्र
हंगामा मच गया।
पान की गुंगटी पर इकट्ठी भीड़ जो कल तक देश के हालात पर,मौज़ूदा राजनीति पर
मुबाहिसा किया करती थी ,अब सिर्फ़ और सिर्फ़ स्वर्णहार की चोरी की बातें कर रही
थी।पान पर पान चुभलाया जा रहा था और सारी संभवनाओं को खंगाला जा रहा था।बात कहीं पर
अटक जाती तो पान की चुभलाहट में मुखइन्द्रियों को व्यस्त रखने वाला कोई अत्यंत
बुद्धिमान व्यक्ति पान की पीक फेंककर अस्फुट स्वर में बोलना छोड़ एक नये दम के साथ
नई तक़रीर रखता और बाकी के लोग उस तक़रीर में उलझ जाते।
'हरिहर बाबू के दामाद के चाचा पुलिस में आला अधिकारी हैं।सुने हैं उ खोजी
कुत्ता लेकर आने वाले हैं,चोर का पता लगाने।'
किसी ने ऐसा कहा तो कोई इस बात के ख़िलाफ़ यह प्रतिकारी दलील लेकर खड़ा हो गया
-'ई तो बहुत बचकाना क़दम है भाई।कुत्ता का क्या है,रोटी से लेकर कुत्तिया किसी के भी
पीछे कहीं घुस जाए।ललना चम्पिया पाले हुए है, कल को उ खोजी कुत्ता उ कुतिया के महक
से खिंच कर ललना के घर घुस गया तो का ललना चोर हो जाएगा?'
पास खड़े ललन ने यह बात सुनी तो मारे घबराहट के थूक सटकने लगा।
हरिहर बाबू के संभावित कदम के बारे में बहुत बातें हुईं पर जो दरअसल हुआ वह था
10 कोस दूर से रामबुझावन को बुलाना।रामबुझावन के बारे में यह मशहूर था कि जो
गुत्थियां बड़े बड़े पुलिस ऑफिसर, उनके खोजी कुत्ते यहां तक कि सी.आई.डी. ऑफीसर्स तक
नहीं सुलझा पाते थे वह गुत्थियां रामबुझावन आत्मा की मदद से चट से सुलझा देता
था।
उस दिन हरिहर बाबू के ओसारे पर रामबुझावन आया और कौतूहल में डूबी भीड़ के सामने
उसने अपनी आसेबी तफ़्तीश शुरू कर दी।
राम बुझवान ने बड़े से सफ़ेद कागज़ पर कई अबूझ आरेख खींचे,जाने क्या क्या निशान
बनाये फिर कटोरे को पलट कर रख दिया और उसपर अंगुली रख आंखें बंद कर वह अस्फुट स्वर
में कुछ कहता आत्मा का आह्वाहन करने लगा।लोगों को रामबुझावन द्वारा यह ताक़ीद कर दी
गई थी कि वे हलचल न करें ताकि आत्मा को बुलाने में कोई व्यवधान न पड़े।गर्भवती
स्त्रियों को दूर रहने कहा गया था।भीड़ पर एक रहस्यमयी आतंक पसर गया था।लोग सांस
थामे रामबुझावन की कारगुज़ारी देख रहे थे।अचानक रामबुझावन की अंगुली के नीचे पड़ा
औंधा कटोरा फिसलने लगा।अगर वहां कोई रैशनलिस्ट होता तो इस घटना का श्रेय अंगुली के
दबाब से उत्पन्न हुए केन्द्रापग बल को देता पर गांव में किसी रैशनलिस्ट के होने की
उतनी हीं संभावना होती है जितनी कि रेगिस्तान में पानी की।अगर भूले से कोई
रैशनलिस्ट कभी गांव आ भी जाए तो गांव की पुरातन मान्यता को चुनौती देते रैशनलिस्ट
को गंवई मूल्यों के प्रहरी लठैत मारते पीटते गांव से कोसों बाहर खदेड़ आते
हैं।
बहरहाल बात रामबुझावन के चोर-पकड़ उपाय की ,रामबुझावन का कटोरा घूमता घूमता
रामबुझावन द्वारा बनाये एक निशान पर थम गया ।रामबुझावन ने कुछ गूढ़ आकलन किया और कहा
-'चोर पश्चमी टोला में 100 परिदेश के अंदर रहता है।चोर का रंग काला है और क़द मझौला
'
रामबुझवान की इस बात ने लोगों के बीच अटकलों के घोड़े दौड़ा दिये।
'ज़रूर मनसुखवा का बेटा परमानन्द होगा।रंग भी काला है और पश्चिम टोला में भी
रहता है और है भी साला बड़ा घाघ ।'
'नहीं नहीं परमानन्द नहीं होगा,पांच साल लुधियाना में ऊन का फैक्ट्री में
नौकरी कर बहुत कमाई किया है उ , देखे नहीं कैसे नयका फटफटिया लिया,छप्पड़ सिजवाया
।उसको चोरी करने का क्या ज़रूरत!'
यह अटकल जब खारिज़ हुई तो किसी ने धीरे से हरिहर बाबू के कान में कुछ कहा जिसे
सुनकर हरिहर बाबू की नज़र भीड़ में खड़े महाबली पर टिक गई। रामबुझावन के विवरण से मेल
खाता महाबली समझ गया कि उसपर हरिहर बाबू की बेटी के हार की चोरी का शक़ किया जा रहा
है।वह फ़ौरन कह पड़ा-'मालिक हम मर्द हैं मर्द ,चोरी नहीं छिनैती करते हैं ,उ भी चार
गांव छोड़ कर ।नौ साल से ई धंधा में हैं ,कोई गांव,ग्वार का कह दे कि हम कभी अपना
गांवा को लूटे हैं,माँ काली का क़सम यहीं अपने हाथ से अपना गर्दन काटकर आपका चरण पर
धर देंगे।'
महाबली की बात में आत्मविश्वास और स्वाभिमान लहलहा रहा था।ऐसा स्वाभिमानी आदमी
भला चोरी-चकारी जैसा तुच्छ काम कैसे कर सकता था और इसलिए उसे भी संदेह के घेरे से
बाहर निकाल दिया गया ।कुछ और नाम उठे और तर्क की कसौटी पर खारिज़ हुए,फ़िर नाम आया
मंगना का।
एक ने कहा-'मंगना काला भी है और उसका क़द भी मझौला है।और तो और उसके घर में
हरदम फांकेहाली रहता है।भूख जो न कराए।ज़रूर वही चोरी किया है।'
दूसरे ने इस बात को अपने तर्क से पृष्ठांकित करते हुए कहा'-साला रोटी का
छुछलाया ई आदमी सपना देखो कितना बड़ा देखता है।कहता है बेटा को कैसे भी करके
पढ़ायेगा,बड़ा आदमी बनाएगा।कैसे भी करके समझ रहें हैं न मतलब चोरी करके चकारी
करके।'
उस आदमी की कही इस बात में बड़ा दम था।इंसानों का तर्क और भूत का निर्णय आपस
में पूर्णतया मेल खा चुका था।चोर ज़ाहिर हो चुका था।हरिहर बाबू भी निर्णयात्मक स्वर
में बोल पड़े- 'चोर ज़रूर मंगना हीं है,तभी तो साला डर के मारे यहाँ आया भी नहीं ।लाओ
साले को खींच के।'
यह सुनते हीं गांव के लठैतों,बकैतों का हुजूम त्वरित न्याय करने माँगन की
झोपड़ी की ओर कूच कर पड़ा।थोड़ी देर बाद भीड़ द्वारा मांगन की खुदरा मार-पिटाई करते हुए
उसे हरिहर बाबू के ओसारे पर लाया गया ।मार-पीट का थोक और असल कार्यक्रम अब शुरू
हुआ।मांगन रिरियाते हुए लाख सफ़ाई देता रहा पर भूत के निर्णय पर संदेह की कोई
गुंजाइश नहीं थी अतएव उस पर लात,घूंसे बरसते रहे।बीच बीच में लोग यातना के नई नई
विधियां सुझाते रहे और उन विधियों का क्रियान्वयन भी होता रहा ।एकाध बड़े बुजुर्गों
ने अपने संग्रहित अनुभवों के आधार पर यह भी कहा-' मार सधाने के लिए हरामी भांग खा
कर आया होगा,पहले इसे नींबू चटाओ फिर मारो तब इसपर दर्द का असर होगा।'
हिंदुस्तान में अस्सीसलाना सलाह बड़ी कीमती होती है।यह राजनीति की धुरी होती
है,देश की दशा और दिशा तय करने वाली होती है और इसलिए उस मजलिस में भी इसे बड़ी
गम्भीरता से लिया गया ।सलाह पर फ़ौरन अमल किया गया।मांगन को ढ़ेर सारा नींबू चटाने के
बाद मारने का स्थगित कार्यक्रम फ़िर से चालू कर दिया गया।इतनी पिटाई खा कर भी मांगन
ने अब तक अपना अपराध नहीं क़बूला था ।उसके होश के दिये लगभग बुझने हीं लगे थे कि तभी
ओसारे पर हरिहर बाबू की नौकरानी आई और भीड़ को चौंकाती हुई कह पड़ी- 'दीदीया का हार
मिल गया है ,पछियारी बाग में गिरा हुआ था।'
-पवन कुमार ।

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