लघुकथा:कविता में आग
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©®Pawan Kumar Srivastava/written on 29th September 2018.
उस अलसाई दुपहरी में वह ख्यातिनाम कवि अपने घर के सन्निकट उपवन में अपने वयोवृद्ध पिता और अपनी 4 वर्ष की बेटी के साथ बैठा कविता लिख रहा था कि तभी एक युवती घबराई हुई वहाँ आई और कवि से भयातुर स्वर में कहने लगी-'प्लीज मुझे बचा लीजिये,मेरे पीछे कुछ गुंडे पड़े हैं।'
'कवि की कविता का अभिष्ट हीं होता है पीड़ितों को न्याय दिलाना।तुम घबराओ मत, मैं तुम्हारी वर्तमान स्थिति पर और इन कापुरुषों के कुकृत्यों पर एक अत्यंत हीं मारक कविता लिखूंगा जो लोगों को झकझोर कर उन्हें इस शोषणकारी व्यवस्था के विरुद्ध जगा देगी।मैं उस कविता को फेसबुक समेत सभी अंतर्जालीय पटल पर डालूंगा।मेरे हज़ारों प्रशंसक हैं।वे सब उस कविता को पढ़कर आंदोलित होंगे।तब देखना समाज में कैसी क्रांति आयेगी ।ऐसा होगा मुझे पूर्ण विश्वास है क्योंकि मेरी कविता में वो आग है।'
चित्र साभार- गूगल
कवि यह कह हीं रहा था कि सहसा हवा का एक झोंका आया और कवि की कविता समाहित किये हुए पन्ने को उड़ा कर ले गया।कवि भागा अपने पन्ने की ओर और थोड़ी जतन के उपरांत पन्ने को पुनरार्जित कर लौटा।युवती को वहाँ न देख उसने अपने वयोवृद्ध पिता से उसके सम्बन्ध में पूछा।उसके पिता ने जब बताया कि उसे कुछ गुंडे बलात उठाकर ले गये तो उसने सहानुभूति मिश्रित ठंडे उच्छ्वास के साथ 'ओह' कहा ततपश्चात दृढ़-विनिश्चयन के साथ कहने लगा-' अब इस अमानवीय स्थिति,इस घोर कुव्यवस्था पर कविता तो लिखनी पड़ेगी।'
यह कह कवि अपनी ध्येयित कविता को लिखने की दिशा में वैचारिक पेंगे लेने लगा कि तभी उसकी चार वर्ष की बेटी खेलने के दौरान गिर पड़ी और चोटिल हो रो पड़ी।उस क्रांतिकारी कवि ने अपनी बच्ची की रुदन क्या सुनी,वह अपनी सारी सोंच,सारे अभिक्रम को स्थगित कर अपनी बेटी के आंसुओं को पोछने भागा।
-पवन कुमार ।

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