चित्र साभार:गूगल
उसे टैड्डी बीयर चाहिए था
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©®Pawan Kumar Srivastava/written on
14th Oct 2018.
वह ग्यारह साल की एक बेहद गऱीब,मंद बुद्धि और गूंगी लड़की थी पर उसकी हसरत न गूंगी थी,न गऱीब जो उससे हरदम टैड्डी बीयर मांगती रहती थी।
उस गूंगी लड़की ने अपनी माँ की मालकिन
के घर एक मासूम मख़मली सा टैड्डी बीयर देखा था।यह टैड्डी बीयर की हीं लालसा थी जो
वह रोज़ अपनी काम पर जाती माँ के साथ चिपक लिया करती थी।
यह टैड्डी बीयर हीं था जिसे पाने की
लोभ में उसने किसी बदजात के दिये अंजाने दर्द को अपने कोख में छिपा लिया था।अब वह दर्द
धीरे धीरे आकार लेने लगा था पर दुनिया उसे कुपोषण से फूला पेट समझती रही।कैसी
विडम्बना है कि भूख से पेट कभी गड्ढ सा बन जाता है तो कभी फूल भी जाता है।
एक दिन उसने सबको चौंकाते हुए अपनी कोख
से किसी का पाप उगल दिया।अब वह उस अल्पायु में एक सुगबुगाती ज़िन्दगी को अपनी छाती
से चिपकाये रहती थी।गूंगी लड़की को अब भी टैड्डी बीयर चाहिए था,मासूम मख़मली सा टैड्डी बीयर।
चूंकि अल्पवयता के कारण गूंगी लड़की की
अर्धमुकुलित छाती में दूध नहीं उतरता था,गूंगी लड़की की
ग़रीब माँ किसी तरह बच्चे के दूध का इंतज़ाम कर बच्चे का जीवन रथ आगे बढ़ा रही थी।
एक दिन गऱीबी जनित परिस्थितियों ने उस
गूंगी लड़की की माँ को लील लिया।पालक माँ का साया क्या छिना ,गूंगी लड़की अपने बच्चे के साथ फूटपाथ पर आ गई ।उस दिन लोगों की दी हुई
जूठन,कूठन से गूंगी लड़की का तो किसी तरह गुज़ारा हुआ पर सिर्फ़
दूध पर आश्रित उसका बच्चा दूध की अनुपलब्धता में भूख से बेहाल हो रात भर रोता रहा
।अगली सुबह सब शांत था....बच्चे का रुदन,गूंगी लड़की की खामोश
बेचैनी सब।गूंगी लड़की का बच्चा फुटपाथ पर निस्पंद पड़ा था और पास में गूंगी लड़की
सीने से एक टैड्डी बीयर चिपकाए बैठी थी ।शायद कोई उदारमना उसके बच्चे के लिए
टैड्डी बीयर छोड़ गया था,मासूम मख़मली सा टैड्डी बीयर।
-पवन
कुमार।

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