कविता:बुलेट ट्रेन
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©®Pawan Kumar Srivastava/written on 5th Oct 2018.
चित्र साभार- गूगल
बुलेट ट्रेन शुरू होने वाली है....
यह शानदार शाहाना ट्रेन,
उन उजड़े दयारों से गुजरेगी
जहाँ मातम का स्थायी पता है;
पटरी के दाएं बाएं होंगी
बंजर ज़मीनें, ऊसर खेत,
दुर्भिक्ष के मारे लोग,
विलापती औरतें,
भूखे बच्चों के गड्ढ से पेट,
और आत्महन्ताओं की
हड्डियां;
सुना है बुलेट ट्रेन द्रुतगति से भागेगी,
निबख़्तों को बदहाली की
ज़मीं पर छोड़,
इतनी द्रुतगति से कि उसपर
सवार रईस नहीं देख पाएंगे
कभी इन अभागों की बदहाली;
सरकार से कहना
कि वह इस ट्रेन के
स्थापन की कीमत
किसानों को न बताए,
बेचारे गश खा जाएंगे;
उनके लिए तो
इस ट्रेन का भाड़ा भी
विस्मयकारी तरीके से
महंगा है जो उन्हें
कई दिनों की भूख से
निज़ात दिला सकता है।
उस पैसे से सूने खूंटे का पगहा,
जिसे गले में बांध वे
किसी सूखे ठूंठ से झूलते हैं,
से बैल बंध सकता है,
उनका पेट पल सकता है,
जीवन रथ चल सकता है,
मरण टल सकता है।
-पवन कुमार।

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