Sunday, 7 October 2018

रिश्ते का ट्रांसप्लांटेशन

लघुकथा:रिश्ते का ट्रांसप्लांटेशन
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(एक अख़बारी ख़बर का कहानी में रूपांतरण)
©®Pawan Kumar Srivastava/written on 07 Oct 2018.
चित्र साभार- गूगल
माँ ने बेटी की दोनों किडनी ख़राब होने की बात सुनी तो उसने तत्क्षण अपनी बेटी को फ़ोन लगाया और सहानुभूतिपूर्ण शब्दों में कहने लगी-
'हाय यह क्या हो गया मेरी लाजो।यह नामुराद बीमारी मुझे हो जाती,मैं तो अपनी ज़िंदगी जी चुकी हूं।
करूं भी तो क्या करूं।अगर चार धाम जाने की मन्नत न मांगी होती तो मैं तुझे अपनी एक किडनी दे देती।यह तो तू भी समझती है बेटी एक किडनी के दम पर ईश्वर का दर्शन करने पहाड़ पर चढ़ना न हो पायेगा।हाय करूं भी तो क्या करूं,मेरे सिवा इस घर में तेरा कोई है भी तो नहीं।हे ईश्वर यह तूने किस धर्म संकट में डाल दिया।'
माँ के रोने-धोने पर बेटी ने किसी तरह आश्वासन का विराम लगाया और फ़िर इस बात को चंद दिन गुज़र गए।
उस दिन माँ ने बेटी को फ़िर फ़ोन किया और बेटी की उसी पुरानी पुत्रीचिन्ता से सिक्त स्वर में मिजाजपुर्सी की तो बेटी बोल पड़ी -' माँ अब तुम परेशान मत होना,मुझे ट्रांसप्लांटेशन के लिए किडनी भी मिल गई है और माँ भी।मेरी सास ने मुझे किडनी डोनेट करने का फ़ैसला कर लिया है।'

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