कविता:सेल्स कॉल
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©®Pawan Kumar Srivastava/written on 3rd Aug 2018.
चित्र साभार-गूगल
रोज सेल्सकॉल कर करके तुम थक गए हो
जानता हूँ किसी मवादी घाव सा तुम पक गए हो।
मानता हूँ न कलात्मकता है,न रचनात्मकता है,
सेल्स में सेल्समैन बस एक हीं जुमला बकता है।
'सर वी हैव अ ग्रेट प्रोडक्ट टू ऑफर,
एकाउंट में डाल दूं या पहुंचा दूं घर।'
तुम्हें हर रोज एक हीं डफली,एक हीं राग बजाना है,
बिज़नेस के लिए ग्राहकों के सामने गिड़गिड़ाना है।
याद रखो घर में बीमार बाप,कुंवारी बहन और कई मुनहसिर रिश्ते हैं।
बच्चों की स्कूल फीस,घर का राशन पानी और अनचुकाई किश्ते हैं।
कैसे भी घर का चूल्हा चौका तो चलाना है,
इसलिए आंखे मूंद कर हलाहल पी जाना है।
लड़की हो तो चमड़ी दिखाओ,
लड़के हो तो दमड़ी दिखाओ,
हंसकर,मुस्कुराकर या रोकर,
जैसे भी हो ग्राहक को लुभाओ।
सामने वाला चाहे कमीना हो,तुम सब्र धरे रहना,
होठ के विषाद पर मुस्कराहट का अब्र जड़े रहना।
गिफ़्ट के चमकीले जामे में घूस दो,
वो जो मांगे तुम उनके मुंह में ठूंस दो।
त्यागो शर्म को ,ख़ुद को आले दर्ज़े का बेशर्म बनाओ,
अभी तो पाताल तक गिरे हो,ख़ुद को और नीचे गिराओ।
बेइज्जती का नीम,ज़िल्लत का करेला चख जाओ,
साला सेल्स के सारे उल्टे-सीधे हथकंडे परख जाओ।
चाहे कोई भी पेंच,कोई भी तिगड़म लगाओ,
लाओ,लाओ,लाओ किसी तरह बिज़नेस लाओ।
तो क्या जो सेल्स कॉल कर करके तुम थक गए हो
तो क्या जो किसी मवादी घाव सा तुम पक गए हो।

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