कविता:चक्रवर्ती राजा
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©®Pawan Kumar Srivastava/written on 30th Aug 2018.
"कोई है,
और कोई है मानव,
अनघ,अपोषित,
शोणितहीन,
भुरभुरा,
सहज दहनीय
सूखे लक्कड़ जैसा
जो समिधा बन
यज्ञाहुत हो सके?"
राजा के चक्रवर्ती अभियान
के निमित्त किया जाने वाला
राजसूय यज्ञ
हाथ में ज्वाला लिये
पूछ रहा है ।
-पवन कुमार ।
चित्र साभार-गूगल
*शब्दार्थ:
अनघ-पवित्र /शोणितहीन-रक्तहीन/सहज दहनीय-आसानी से जलने लायक/समिधा-हवन की लकड़ी /राजसूय यज्ञ-ऐसा यज्ञ जो राजा के विश्व विजय के लिए किया जाता था।

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