क्या आप किसी तेज़ाब से जली लड़की को जानते हैं????
चित्र साभार- गूगल
कविता:तेज़ाब की तासीर
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©®Pawan Kumar Srivastava/written on 12th May 2018.
मैं बहुत सुंदर थी,
मृणाल बदन था मेरा
और चेहरा चन्द्रप्रभा सा।
मैं आईने को नहीं
आईना मुझे तका करता था,
अपलक,अविराम।
मेरे पिता मेरी बलैय्यां लेते थे,
मेरी माँ मुझे नज़रे-बद से
बचाने के लिए काला टीका
लगाया करती थी।
पर एक दिन किसी ने
मुझपर तेज़ाब उड़ेल,
मुझे स्याह-रू कर दिया,
मेरे बदन को अपहत कर दिया।
जिस चेहरे से नूर टपका करता था
अब उस चेहरे से मवाद टपकता है।
अब पपड़ीदार माथे पर बिंदी
टिकती नहीं,
अब झुलसे होठों में लिपिस्टिक
की लाली खो जाती है;
अब आईना मुझसे नज़रें चुराता है,
और दर्द बार बार ख़ुद को दुहराता है।
क्या तेज़ाबी तासीर ताउम्र रहती है,
ज़िन्दगी को किश्तों में जलाने
के लिए?
क्या मेरे रूह पर पड़ा अंगार
कभी ठंडा नहीं होगा?
क्या मेरे ख़्वाब बेक़दरी की भट्टी
में भुनते रहेंगे?
क्या मेरे हाथों में कभी मेंहदी,
पैरों में महावर नहीं रचेंगे?
क्या काले, कलुषित बदन पर
हल्दी,कुमकुम नहीं चढ़ती?
नहीं !
ज़िन्दगी ने अगर ज़ख्म दिया है
तो मरहम भी ज़रूर देगी।
कोई आएगा जिसकी आंखें
इन सड़ी चमड़ियों को भेद कर
मेरे हौसले के ज़ीनत को देखेंगी।
मेरे बदन को भले तेज़ाब ने
जला दिया हो,
पर मेरा हौसला अब भी
चाँद की उजास लिये
दमक रहा है।
मैं अब भी सुंदर हूँ,
हूँ न????
-पवन कुमार श्रीवास्तव।

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