Monday, 9 July 2018

लघु कथा:कर्मा

'हैलो'
'हैलो'
'मेरी जतिन ठकराल से बात हो रही है?'
'हाँ मैं जतिन ठकराल बोल रहा हूँ।आप कौन?'
'सर मैं आई टी पी एम बैंक के डीएसए से अनूप कुमार बोल रहा हूँ।सर हमारी कंपनी आपको फ्री में क्रेडिट कार्ड दे ......'
'फ़ोन रख यू इडियट...फ़ोन रख वरना आई विल सू यु'
चित्र साभार- गूगल 
ठकराल ने फ़ोन पर ऐसा तल्ख़ तेवर दिखाया कि टेली कॉलर अनूप ने सहम कर फ़ोन रख दिया।अपमान और अवसाद के भाव उसपे तारी हो गए।अनूप को गहरे अवसाद में डूबा देख उसके पास बैठे सहकर्मी ने पूछा 'क्या बात है यार इतना दुखी क्यूँ है?
'यार ये लोग ,इन्हें क्रेडिट कार्ड नहीं चाहिए ठीक है पर इस तरह का व्यवहार।ये इंसान को इंसान समझते हीं नहीं।'
इस तरफ़ अनूप अपने सहकर्मी के साथ अपना दुःख साझा कर रहा था और दूसरी ओर एक बड़ी कंपनी के डायरेक्टर से मिल पाने में असफ़ल रहा ठकराल कार में घर लौटता हुआ अब भी अंसतोष के कुछ अस्फूट स्वर बुदबुदा रहा था।ठकराल के पुराने मुंहलगे ड्राइवर ने मालिक को इस हाल में देखा तो पूछ बैठा-
'क्या हुआ सर?'
'अरे एक तो इस कंपनी के डायरेक्टर ने मूड ख़राब कर दिया, दूसरा ये कमबख़्त क्रेडिट कार्ड वाले ...इनको कह चुका हूँ कि क्रेडिट कार्ड नहीं चाहिए फिर भी जब तब कॉल करते रहते हैं।'
'कम्पनी के डायरेक्टर ने क्या किया सर?'
'मुझे मिलने का समय देकर पहले तो घण्टे भर इंतज़ार करवाया, फिर रिसेप्शनिस्ट से मुझे कहलवा भेजा कि मैं बाद में आऊं, अभी वह बिजी है।ये साले ज़रा सा क़ामयाब क्या हो जाते हैं,इंसान को इंसान नहीं समझते।'
ठकराल की यह बात सुन,ड्राइवर चाहता था ठकराल को बताना कि सब कर्म का फेर है पर अपनी हैसियत के दायरे को लांघना उसने उचित नहीं समझा और वह चुप रहा।
-पवन कुमार श्रीवास्तव।

©®Pawan Kumar Srivastava/Written on 20th March 2018.

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