Wednesday, 25 July 2018

लघुकथा:फूल


चित्र साभार - गूगल 

वह औरत जिसका सौंदर्य ग्रहणयुक्त चाँद सा निष्प्रभ हो गया था ,जो अपने शरीर के पोर पोर से अपनी शोषित होने की कहानी कह रही थी,निढ़ाल सी उस सरकारी बाग के बेंच पर बैठ गई।उसने अपनी निचाट निसंग दृष्टि बाग में दौड़ाई,देखा चारों ओर नानावर्णी फूल आह्लादक हवा में झूम रहे थे।साथ हीं एक पाषाण-पट्टिका पर लिखा था 'इन नयनाभिराम फूलों को देखो,निरेखो,सूँघो,सराहो,पर तोड़ो मत।'
जाने उस औरत को क्या सूझी उसने धरती पर गिरा एक कंकड़ उठाकर पाषाण-पट्टिका पर लिखे 'फूलों' को काटकर उसकी ज़गह 'औरतों' लिख दिया।
©®Pawan Kumar Srivastava/written on 23rd July 2018.
-पवन कुमार ।

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