Sunday, 22 July 2018

ग़रीब


ग़रीबों की ग़ुरबती के ऊपर
अफ़रात स्याही उड़ेली गयी
कई आलेख लिखे गए
कई सोंच धकेली गयी

कभी मज़मा लगा
कभी मजलिश सजी
मुख्तलिफ़ ख़यालों की
खूब रंजिश मची

कागज़ी नीतियां बनी
ज़ुबानी भाषण हुआ
मंच पे सरमायादारी का
जम के निष्कासन हुआ

जुल्म जकड़ा गया
ख़ुलूस ने सबको छुआ
जो जो हो सकता था
वो वो सबकुछ हुआ

गोशे-ज़ुल्मत में पर
ग़रीब बैठा रहा
उस तक तरक्की की
कभी न पहुँची शुआ ।

©®Pawan Kumar Srivastava
पवन कुमार श्रीवास्तव की मौलिक रचना।

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