Thursday, 16 August 2018

नामर्द


कथा:नामर्द
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                                                      ©®Pawan Kumar Srivastava

हट भूतनी के ,पिछवाड़े में गू नहीं और चला सूअर को दावत देने उस ज़िस्म फरोश औरत ने यह कहते हुए जुल्लू को ऐसी जोर की लात जमाई कि इकहरे बदन का जुल्लू उस झिलंगी सी खाट से सीधे नीचे आ गिरा | ज़ुल्लू ने उस ज़िस्मफरोश औरत की इस बदतमीज़ हरक़त का कोई विरोध नहीं किया और चुपचाप उठकर उस नीम रोशन कमरे के अलगनी में टंगी अपनी पतलून पहनने लगा | जुल्लू विरोध करता भी तो किस मूंह से |पिछले दो घंटे से वह मिन्नतें कर कर के उस जिस्मफरोश औरत से वक़्त ले रहा था पर नतीज़ा क्या निकल रहा था घंटा | वो बाज़ारू औरत थी ,बाज़ार के चलन को समझती थी |जिस दो घंटे को गंवाकर जुल्लू कुछ नहीं कर पाया था ,उतने वक़्त में तो कई ग्राहक कई बार उस औरत के साथ ज़िस्मानी सुख पाने का खेल खेल गए होते और बदले में उसके उन्नत उरोजों की घाटी में पैसे भर गए होते |और इसलिए जब तक जुल्लू उस बोसीदा से कमरे से लगी सीढियां उतर कर नीचे सड़कों पे न आ गया ,उस ज़िस्म फरोश औरत की गालियाँ उसका पीछा करती रही |

जुल्लू के माँ बाप उसके बचपन में हीं एक सड़क हादसे का शिकार हो ,ज़ेरे खाक़ हो गए थे  और जुल्लू के रिश्तेदार के नाम पर बस ज़ुल्लू के चाचा का परिवार बचा था |पर ये चाचा का परिवार पारिवारिक ज़वाबदेहिता निभाने के मामले में जुल्लू के बाप से भी कोसो आगे था तभी तो जुल्लू के जवान होते हीं उन्होंने जुल्लू की शादी की रट लगा दी |दवाब ज़ोरदार था |जुल्लू को शादी के लिए अपनी रजामंदी देनी हीं पड़ी |

जब कोई नौजवान शादी की राह पर अग्रसर होता है तो उसे दो फ़िक़र धर दबोचती है एक तो कमाई की और दूसरी ज़िस्मानी क़ुव्वत की |जुल्लू एक शमशान-भूमि का सुपरवाईजर था |मुख़्तसर हीं सही पर कमाई बंधी हुई थी और इसलिए जुल्लू के लिए कमाई सरदर्दी का सबब नहीं थी |उसे अगर कोई फिकर मारे जा रही थी तो वह यह कि क्या वह अपनी बीबी को ज़िस्मानी सुख दे सकेगा |आदमी भले अन्य क़िस्मों की चिंताओं को अपने अन्दर हीं महदूद रखे पर यह एक चिंता ऐसी है जिसका साझा  हर होने वाला दूल्हा अपने शादीशुदा दोस्तों से करता है और नसीहतें लेता है |जुल्लू ने भी ऐसा किया था और दोस्तों की सलाह पे कामशास्त्र से लेकर कोकशास्त्र तक कई किताबें खंगाल डाली थी |बस एक प्रायोगिक जांच बची रह गयी थी सो उस दिन जी बी रोड के उस बलाखाना का रुख़ कर जुल्लू ने वह आज़माइश भी कर ली | पर बदकिस्मती से जुल्लू उस आज़माइश में नाकाम रहा |
चित्र:साभार गूगल  

एक मर्द अपनी तमाम दौलत गँवा कर भी उतना मायूस नहीं होता जितना कि मर्दानगी गँवा कर |ज़िल्लत की कोई भी बरछी सीने में वो घाव नहीं कर पाती  है जो औरत द्वारा दिया नामर्दी का ख़ताब कर जाता है,चाहे वह औरत रंडी हीं क्यूँ न हो |जुल्लू के ख़ुद  की निगाहों में उसकी इज्ज़त तार तार हो गयी थी साथ हीं यह साबित हो गया था कि वह शादी के नाक़ाबिल है | जुल्लू ने अपनी शादी रुकवाने की भरसक कोशिश भी की पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी | यार अहबाबों में शादी के कार्ड बंट चुके थे | शामियाने ,लाइट ,बाजे गाजे वाले सबको पेशगी दी जा चुकी थी |उसकी शादी रुकवाने की कोशिशें कामयाबी तो हासिल नहीं कर पायी उलटे उसके चाचा को बुरी तरीके से भड़का गयी | देख बे लौंडे मेरी नामख़राबी की तो तेरा बाप नहीं हूँ कि बर्दाश्त कर लूँगा |’कड़क मिजाज़ चाचा का यह हूल जुल्लू को शांत करने के लिए काफी था |और इसलिए उस दिन से शादी के मंडप में बैठने तक जुल्लू शांत रहा |हाँ फेरे लेने के लिए जब उसकी धोती और उसकी पत्नी की साड़ी का छोर आपस में बांधा जा रहा था तो उसका बड़ा जी हुआ कि वह उस गठबंधन को खोल कहीं भाग जाए |दिल्ली इतनी बड़ी है ,चाचा के हैबतनाक नज़रों से दूर वहीँ कहीं भी छुप छुपा के रह लेगा पर जुल्लू की यह सोंच हक़ीकत का जामा पहनने से पहले हीं दम तोड़ गयी|

जुल्लू की पत्नी ,जिसका नाम कोमल था ,सचमुच कोमलांगी थी |गोरा रंग ,मस्त स्याह आँखें ,गदराई ज़िस्म किसी में भी हसरत पैदा कर देते और कोमल को देखकर हसरतों की लहर जुल्लू में भी ख़ूब उठा करती थी पर उस हसरत के लहर के उफनने का फायदा हीं क्या जो साहिल तक पहुँचने से पहले खत्म हो जाए | और इसलिए जुल्लू कसमसा के रह जाता था | शादी के हफ़्ता भर बीतने को आये थे पर जुल्लू ने कोमल को चोर निगाहों से देखने और काम  की दो टूक बातें करने के सिवा कुछ नहीं किया था |कोमल को अपने पति की यह बेरुखी खलती ज़रूर थी पर हया की दहलीज़ में सिमटी कोमल कर भी क्या सकती थी |ऐसा नहीं है कि जुल्लू कोई कवायद नहीं कर रहा था |उसने शादी होने के कुछ दिन पहले से लेकर अब तक मर्दानगी बढाने वाले कई नुस्खे आजमा डाले थे |कई शक्ति वर्धक जड़ी बूटियों में अपनी काफी जमा पूंजी उड़ा डाली थी पर उस रंडी ने जुल्लू के  आत्म -विश्वास की धज्जियाँ इस कदर उड़ा दी थी कि वह तमाम दवा दारू करने के बावजूद अपनी बीबी के पास जाकर अपनी जिस्मानी क़ुव्वत आजमाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था |

‘दवा ज़रूर असर कर गयी होगी ,सत्ते भी तो इसी पलंग तोड़ दवा को खाकर चार चार बच्चों का बाप बना |अब मैं बीबी के साथ सोने के लायक हूँ पर कहीं दवा बेअसर रही हो ! कैसे पता चेलगा ? .....सो कर हीं तो .....नहीं नहीं बीबी के साथ नहीं .....रंडी ...हाँ एक नई रंडी ......वहां सब पता चल जायेगा .....बीबी के सामने अपनी थुक्का-फज़ीहत कराने से अच्छा है कि रंडी की लताड़ खायी  जाय|काफी देर तक इस उधेरबुन में फंसे जुल्लू ने आख़िरकार यह फैसला लिया और अब तक खाए मर्दानगी के दवा के असर की आज़माइश के लिए उसने फिर एक बार रंडीखाने की राह पकड़ ली |

जुल्लू जैसे हीं जी.बी रोड पहुंचा ,गलाज़त से भरी उस संकड़ी सी गली में ग्राहकों को लपक लेने के लिए तैयार बैठे दल्लों ने उसे घेर लिया |काफी चिल्ल-पौं के बीच एक सयाना दल्ला जुल्लू को ले उड़ा |वह जुल्लू को अपने ईमान का हवाला देता ,अपनी रंडियों के खुसिसियत बताता एक कोठे की तरफ हांका जा रहा था और जुल्लू ख्यालों के उथल पुथल से भरे दरिया में उब डूब करता चला जा रहा था | जैसे हीं एक कोठे के जीने की उसने दो चार सीढियां चढ़ी ,पुराने ज़िल्लत का घाव फिर से हरा हो गया |डर के भूत ने उसे फिर से दबोच लिया |जुल्लू पहले तो बुत बना खड़ा रहा फिर उलटे पांव भाग आया |


महरौली की वह सरकारी शमशान भूमि  दिल्ली के तमाम लावारिस लाशों की  इकलौती पनाहगाह थी |यहाँ रात बिरात,किसी भी समय सरकारी नुमाईंदे टूं टूं करते एम्बुलेंस में लावारिस लाशों को लेकर आते थे  और यहाँ के सुपर वाईजर के जिम्मे छोड़कर चले जाते थे |सुपर वाईजर बिजली की चिता में लाश को लिटा कर पल भर में  उसे राख में तब्दील कर दिया करते थे |उस शमशान भूमि में जुल्लू के अलावा एक और सुपरवाईजर काम करता था |काम दिन और रात के पाले में बंटा था |दोनों सुपर वाईजरों के बीच बारी बारी से छह महीने के लिए रात की तैनाती होती रहती थी |रात में काम करना दोनों हीं सुपरवाईजरों को बड़ा खलता था और वे बड़ी बेसब्री से ६ महीने के अपने तकलीफ़देह वक़्त के गुज़र जाने का इंतज़ार किया करते थे |रात की ड्यूटी से उनके कन्नी काटने की वज़ह बड़ी जायज़ थी |दिन में तो उस शमशान भूमि में एक आध आदम ज़ात दिख भी जाता था पर रात में लाश को जलाने में मदद करने वाले बूढ़े जमादार ,झींगुर की आवाज़ और हवा की उदास सनसनाहट के अलावा अगर किसी का साथ मिलता था तो वह थी लाश |बच्चे की लाश ,बूढ़े की लाश ,ट्रक से बुरी तरह कुचली लाश ,ज़हर से नीली पड़ी लाश,पोस्ट मोर्टेम में क्षत विक्षत हुई लाश और कभी कभी जिंदा होने का आभास कराती नवयौवनाओं की लाश |उस रात भी म्युन्सिप्लिटी वाले एक नवयौवना की लाश जुल्लू के हवाले कर चले गए थे | हमेशा की तरह शराब में धुत जमादार आया और जुल्लू की मदद से लाश को चिता की पटरी पर लिटा कर डगमगाता हुआ शमशान भूमि के सदद के पास बनी झोपडी में जाकर निढाल लेट गया | जुल्लू को बस बिजली का बटन दबाना था और वह लाश पल में खाक हो जाती |


जुल्लू ने बटन को दबाने से पहले उस लाश की ओर देखा |२० २२ साल की कोई लड़की थी |बेहद खूबसूरत | इतनी खूबसूरत की मौत भी उसकी खूबसूरती की अलामत छीन नहीं पायी थी | जाने क्या हुआ जुल्लू को ,उसने पहले तो उस लाश के  गोरे गालों को छू कर देखा और फिर उसके ऊपर पड़े कफ़न को पूरी तरीके से हंटा दिया | सामने नंगी लाश थी ,मछली के पीठ जैसी उज्जवल ,खूबसूरती और वीभत्सपने का साथ साथ नुमाया करती लाश | उस लाश को देखकर उबकाई भी हो सकती थी और शायद इच्छाओं का शैतानी स्पंदन भी |मुद्दा ये था कि निगाह किसकी थी |आम आदमी की या उस जुल्लू की जिसे कुछ दिन पहले एक रंडी का धिक्कार नसीब हुआ था | जो चुपके चुपके अपनी बीबी के यौवन को निहारा करता था पर उस यौवन का रसास्वादन करने की हिम्मत सिर्फ इसलिए नहीं जुटा पा रहा था क्यूंकि उसे इस बात का डर था कि कहीं वह पिछले बार की तरह नाकाम न हो जाए और बीबी से उसे वही हिक़ारत,वही धिक्कार न नसीब हो जाए जो उसे रंडी से मिला था |उसने बीबी के साथ अपनी मर्दानगी की आज़माइश नहीं की पर निशक्त लाश के साथ वह ऐसा कर सकता था |वह नाकाम भी होता तो लाश उसे चिढाती नहीं ,उसे नामर्द नहीं कहती |शायद उस वक़्त ऐसा हीं कुछ तसव्वुर रहा होगा जूलू का जब उसने ख़ुद को उस बेजुबान लाश पर आरोपित कर दिया

जुल्लू ने लाश के साथ समागम कर क्या निष्कर्ष निकाला यह तो नहीं पता पर अगले छह महीने तक उसकी हवसनाक हरकतें चलती रही |जब भी किसी बेजान औरत का शरीर उसे मिला उसने उसे जलाने से पहले ख़ूब निचोड़ा | इस छह महीने के दौरान उसने अपनी बीबी को भी ख़ूब निहारा पर दूर दूर से |तब जब उसकी बीबी सोयी होती थी ,तब जब उसका आँचल ढलका होता था पर वह कभी अपनी बीबी के करीब नहीं गया |

जुल्लू के रात की ड्यूटी के छह महीने पूरे हो गए और उसकी ज़गह दूसरे सुपर वाईजर ने रात का कमान सम्हाल लिया |जुल्लू अब उस श्मशान भूमि में दिन में ड्यूटी देने लगा |सूरज की रौशनी ने जुल्लू के काले करतूतों को आश्रय देने वाली स्याह रात उससे छीन ली | वो जुल्लू जो कल तक रात की ड्यूटी से खार खाया करता था अब दिन की ड्यूटी से चिढने लगा | दिन की ड्यूटी का एक एक लम्हा उसे सदियों सा लगने लगा |उसका मन औरतों के बेजान पिंडों का स्वाद चखने के लिए तड़पने लगा |हवस का भूत सर पे ऐसा नाचने लगा था कि उसके आँखों की नींद तक काफ़ूर हो गयी |वह रात भर जग कर अपनी सोयी बीबी कोमल को निहारता रहता |एक रात जब उसकी हसरतें ज़्यादा कुचालें मारने लगीं तो उससे रहा नहीं गया और दम साधे वह अपनी बीबी के पास गया और उसकी साड़ी को उठाने लगा |हौले हौले उसने अपनी बीबी की साड़ी जांघों के ऊपर तक उठा दी और फिर अपलक अपनी बीबी को देखने लगा |सोयी बीबी उसे लाश सी प्रतीत हो रही थी ,निरीह ,निश्चेष्ट |उसे उस वक़्त वही लुत्फ़  मिल रहा था जो उसे लाशों से मिला करता था |पर तभी उस सोये शरीर में एक जुंबिश हुई ,जुल्लू की पत्नी बड़ी तेजी से उठी और जुल्लू को अपने बांहों के घेरे में कस लिया |दरअसल जब जुल्लू अपनी बीबी को निर्वस्त्र कर रहा था ,उसकी बीबी कोमल सोये हुए का अभिनय कर रही थी और उम्मीद कर रही थी कि उसके मन के सेहरा पे पहली बार बारिश होगी |पर जब जुल्लू ने ख़ुद को देखने तक सीमित रखकर कोमल को नाउम्मीद कर दिया तो कोमल से रहा नहीं गया और उसने सारी लाज-हया को तिलांजलि देकर जुल्लू को बांहों में भर लिया |पर ये क्या ! जुल्लू ऐसे बिदकने लगा मानो उसे बिजली की तार ने छू लिया हो |पल भर पहले जुल्लू के जिन आँखों में वासना के नीले डोर तैर रहे थे अब उन्हीं आखों में घबराहट  थी |उसने जोर लगाकर कोमल को ख़ुद से अलग किया और बिस्तर से दूर जाने लगा | कोमल शौहरशुदा होकर भी शारीरिक सुख से महरूम थी |पर अब शादी के ७ महीने बाद उसका सब्र ज़वाब दे चूका था |वह जुल्लू की निस्बत पाना चाहती थी ,उसके शरीर की महक अपने रेज़े रेज़े में भरना चाहती थी और इसलिए वह फिर भागी गयी और गिड़गिड़ाती हुई जुल्लू से लिपट गयी |इस बार उसकी पकड़ पहले से भी ज़्यादा ज़ोरदार थी और इसलिए जुल्लू ने भी अपना प्रतिकार उसी अनुपात में बढ़ा  दिया |एक ज़ोरदार धक्का और कोमल हवा में उछलती हुई पीछे की दीवार से जा टकराई |कोमल का सिर खरबूजे की तरह फट गया और रक्त का फव्वारा बह निकला | कोमल दर्द से तड़पने लगी | जुल्लू से भारी भूल हो गयी थी | पछतावे में सराबोर जुल्लू भागा हुआ कोमल के पास गया और लहुलुहान कोमल को सम्हालने की कोशिश करने लगा |वह बार बार कोमल से अपने किये की माफ़ी मांगे जा रहा था और उसके सर से हो रहे रक्त श्राव को रोकने की कोशिश कर रहा था | अचानक कोमल की तड़पन बंद हो गयी और उसका शरीर बेजान हो जुल्लू के गोद में लुढ़क गया |जुल्लू थोड़ी देर तक अविश्वास के आलम में जकड़ा रहा पर फिर धीरे धीरे उसके भाव बदलने लगे |आँखों में फिर से वही नीला डोर उभरने लगा |उसने कोमल की लाश को हौले से ज़मीन पर लिटा दिया और फिर धीरे धीरे कोमल के बेज़ान ज़िस्म पे पड़े हर कपड़ों को हँटाने लगा |रात की स्तब्धता में जुल्लू के वासनामय साँसों की धौंकनी स्पष्ट सुनाई दे रही थी |


-पवन कुमार श्रीवास्तव |


5 comments:

  1. पवन भाई, बेहतरीन कहानी है आपकी। आपने जिस बोल्डनेस के साथ जुल्लू के मनोविकार का चित्रण किया है वह सराहनीय है। निश्चित रूप से कहानी का शीर्षक नामर्द बहुत सटीक और सार्थक है। आपकी कहानी की भाषा कथा और पात्र के अनुरूप है। आपको बधाई।

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    1. बहुत बहुत आभार डॉक्टर साहब।

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  3. मित्र आपकी सभी रचनायें ह्रदय को छूते हुए मष्तिष्क को झकझोर देती हैं। किस खूबसूरती से एक मनोरोगी के विचारों का चित्रण किया है। बहुत ही सुंदर।

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