कविता- हद चुतियापा है
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©®Pawan Kumar Srivastava/written on 19 Sept 2013.
ये कैसा कोहराम है यहाँ ,
ये कैसा स्यापा है;
गोशे गोशे में फैला ,
यहाँ हद चुतियापा है |
अच्छाई की क़िल्लत है ,
यहाँ बुराई में इज़ाफ़ा है;
गोशे गोशे में फैला ,
यहाँ हद चुतियापा है |
चित्र साभार- गूगल
काले धंधे वालों ने ख़ुद को
यहाँ सफेदपोशी से ढांपा है ;
बेईमानी के मज़मून पे चढ़ा
इमानदारी का लिफ़ाफ़ा है |
और रिश्तों में सिर्फ तल्खी है
न भाईचारगी ,न बहनापा है;
गोशे गोशे में फैला ,
यहाँ हद चुतियापा है |
साधू की शक्ल में शैतानों ने
यहाँ राम का नाम जापा है ;
भूखा बचपन है यहाँ
और मोहताज़ बुढापा है |
और पप्पू का पड़ोसी यहाँ
निकलता पप्पू का पापा है;
गोशे गोशे में फैला ,
यहाँ हद चुतियापा है |
©पवन कुमार श्रीवास्तव

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