Sunday, 9 September 2018

गे हो क्या !

लघुकथा:गे हो क्या !
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©®Pawan Kumar Srivastava/written on 7th Sept 2018.
चित्र साभार-गूगल
'तुम अपने बेटे बंटू के सर पर हाथ रखकर क़सम खाओ कि तुम गे नहीं!'
सुबह की सैर से वापस लौटे किशोर को घर की दहलीज़ के अंदर क़दम रखते हीं उसकी पत्नी नीना ने इस अजीबोगरीब क़सम के साथ धर दबोचा ।
'यह क्या बेवकूफ़ाना हरकत है!'
किशोर ने जब यह प्रतिक्रिया दी तो नीना गुस्से में दोहरी हो गई।उसने अपने हाथ में पकड़े अख़बार में शाया हुई किशोर की तस्वीर उसके सामने कर दी और उतावलेपन के साथ उसके ज़वाब का इंतज़ार करने लगी।
'अरे कल समलैंगिक मामले पर अदालत का निर्णय सुनने उत्सुकतावश मैं भी चला गया था।अदालत ने जब समलैंगिकता को अपराध की परिधि से बाहर निकाल दिया तो समलैंगिक लोग वहीं जश्न मनाने लगे ।मीडिया इस दृश्य को कैमराबद्ध कर रही थी ।मैं भी उनकी तस्वीर में आ गया ,इसका मतलब मैं थोड़े हीं...'
इससे पहले कि किशोर अपनी बात पूरी कर पाता,उसकी जेब में पड़ा मोबाइल घन्ना उठा।किशोर ने कॉल पिक किया।दूसरी ओर से उसके एक दोस्त का जिज्ञासा की चाशनी में डूबा सवाल आया-
'अरे तू गे तो नहीं?'
इस सवाल से तमतमाए किशोर ने फ़ोन काट दिया और अपनी पत्नी नीना से अपनी कही बात का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए कहने लगा-
'मैं गे नहीं हूँ ,अगर होता तो क्या अछूत हो जाता !'
किशोर आगे और कुछ कहता, इससे पहले किशोर के दोस्त का नामुराद कॉल फिर आ गया-
'देख अगर तू गे नहीं है तो बता दे,मैं अरहान से 4 बियर की शर्त जीत जाऊंगा।अख़बार में तेरी तस्वीर देखकर वह दावे कर रहा है कि तू गे है।'
किशोर ने अपने इस दोस्त को ज़वाब देने के बज़ाय मोबाइल स्विच ऑफ करना गवारा किया।उसके बाद वह नीना से बड़ा जज़्बाती हो कहने लगा -
'अपना बंटू जो हमारे कलेजे का टुकड़ा है ,कल को यह गे निकल आया तो क्या यह पापी हो जाएगा? ...क्या हम इसे प्यार करना छोड़ देंगे ?
नीना अदालत निर्णय बदल सकती है ,सोंच नहीं ..लोगों की सोंच आज भी जस की तस आदिम है।तभी तो आज अख़बार में महज़ मेरी तस्वीर गे लोगों के साथ आने से घर ,बाहर सब ज़गह बावेला मच गया।
आज क्या बल्कि सालों साल तक यह समाज समलैंगिकों के प्रति दुराग्रही रहेगा ।उन्हें समाज का कोढ़ मानकर उनसे घृणा करता रहेगा ।'
नीना चुप थी ,दलील के सामने नतमस्तक हो या एक परिष्कृत सोंच के आविर्भाव से,नहीं पता।
वह चुप थी,ठीक वैसे हीं चुप जैसे अदालत के निर्णय के बाद कई लोग हैं ।वे बोलेंगे,एक दिन ज़रूर बोलेंगे।हवा का रुख़ तय करेगा कि वे क्या बोलेंगे ।
-पवन कुमार ।

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