हत्यारा कवि
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©®Pawan Kumar Srivastava
एक हत्यारा कवि अपने
साहित्यिक बोझ के साथ
फांसी पर झूल गया
और हिन्दी के
अनगिनत अनकहे शब्द
निकलते गए
कसते पाश के साथ
विरल होते उसके कंठ से ....
वो शब्द जो अनकहे थे,
जिसे कहना चाहा था
कई बार उसने,
और कई बार तो
चाहा था बेचना
दो सूखी रोटियों के मोल पर ;
पर जिसे एक जोड़ा
कान न मिल सका
दाम कैसे मिलता !
वे शब्द जो कई बार
प्रयासरत रहे
हिन्दी के चिर-परिचित
अहिन्दी सम्मेलनों में-
कि अब उत्थान होगा
अब उत्थान होगा ...
पर इन संकल्पों के कम्पन
मशीनी माइकों के
क्षीण होते हीं
जाने कहाँ विलुप्त हो गए ..
और अगली बार
उपेक्षाओं की अगली कड़ी
उस चाय की दुकान पर
जब उसकी बौद्धिक क्षुधा
सम्मान तलाशने लगी...
वह जो अब तक
धैर्य न खोया था
भूख की विकटताओं में भी, ...
उस चाय की दुकान पर
हिन्दी की उपेक्षाओं ने
उसे हत्यारा बना दिया।
-पवन कुमार श्रीवास्तव।
चित्र साभार- गूगल

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