Tuesday, 4 September 2018

नूरानी चेहरे वाली लेखिकाएं

नूरानी चेहरे वाली लेखिकाएं
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कल मैं एक काव्य-गोष्ठी में गया ।वहाँ श्रोताओं की रूपमुग्ध तालियों के रूप में एक मोहतरमा अपने काव्य-कौशल से ज़्यादा अपना सौंदर्य भुना रही थीं ।अब तक का यही तज़ुर्बा रहा है मेरा ।ख़ूबसूरत लेखिका मतलब योग्य मसिजीवी।बोहेमियन औरत मतलब कुशाग्र-बुद्धि औरत।चैनलों में किस्सा चुनने,गढ़ने,मढ़ने की सारी ज़िम्मेदारियाँ इन नाज़नीनों के हवाले है।ये और बात है कि ये स्वनामधन्य कलमवीरांगनाएं कहानियों का इस क़दर बलात्कार कर देती हैं कि धारावाहिकों में मुजस्सम हुई इनकी पोषित कहानियां भारी ऊब पैदा कर देती हैं और 2-3 महीनों में टैं बोल जाती है।रूप-जाल में फंसे साहित्यिक मंचों के नाज़िम, चैनल,फ़िल्मों वाले कब इस फंदे से बाहर निकलेंगे और किसी ज़िंदा प्रेमचंद,मंटो,मज़ाज़ में किस्सों,गीतों का सुनहला भविष्य देखेंगे ???? निकल जाएं तो अच्छा वरना यूं हीं फ़िल्म इंडस्ट्री से ठुकराया कोई मज़ाज़ पागलखाने पहुँचता रहेगा।कोई प्रेमचंद फांकेहाली के दलदल में ग़ुरूब होता रहेगा ।कोई मंटो गुमनामी और ज़लालत की मौत मरता रहेगा और कहानियों और गीतों के नकली शाह बेरोक शब्दों को सलीब पर टांगते रहेंगे।

©®Pawan Kumar Srivastava/written on 26th Aug 2018.
चित्र साभार-गूगल 
उनकी आंखें शब-गज़ीदा हैं,
और चेहरा नूर-अफशां;
उनके बदन पर चारो पहर
सौंदर्य की सुभग तितलियां
मंडराती हैं;

वे आज़ाद नारी की 
इठलाती नज़ीर हैं;

उन्होंने मय के प्याले में
मर्दों की सत्ता को 
डूबा के मार दिया है;

उन्होंने देरीना तहज़ीबों को
सिगरेट के बेपरवाह धुंए संग
हवा में उछाल दिया है;

वे ज़ुबानी चपकलश की
गामा पहलवान हैं 
जो अपनी प्रतिद्वंदियों को
हमेंशा धोबीपछाड़ मारती हैं;

उनके पांव कभी मख़मली
गलीचों से बाहर किसी
ऊबड़ैले, ख़बड़ैले,शूलसिक्त
सतहों पर नहीं पड़े;

उन्होंने न कभी भूख भोगी है,
न बदबख्ति झेली है;

वे तो ग़रीबी का शब्द-विन्यास
तक नहीं जानतीं,
वे फ़िर भी लिखती हैं
अपने वातानुकूलित कमरे
में बैठ इन मौजूओं पर;

उन नूरानी चेहरों वाली 
ख़ूबरू लेखिकाओं ने
रोटीकशी के खेल में 
ज़मीनी लेखकों को
मीलों पीछे छोड़ दिया है
और अपने लिए 
जुगाड़ लिया है
रोटी से भी बहुत ज़्यादा 
,बहुत कुछ,मसलन
गाड़ी,बंगला,मातहत,महकूक
और अदबी ताज भी;

अब समझ में आया 
उनके चेहरे पर आरास्ता
सुर्ख लेप 
और होठों पर क़ाबिज़ 
गुलेराना रंग 
क़ामयाबी को साधने का 
टोटका था;

अब समझ में आया उनकी
नशेबोफराज़ उंगलियों में
जलती सिगरेट रहनुमाओं को
दिखाई अगरबत्ती थी;

अब समझ में आया
उनके मुंह से निकलता 
गालियों का लच्छा 
वेद की सुश्रुत्य ऋचाएं थीं;

तभी तो ऊपरवाला 
उनसे इतना अभिभूत
हो गया कि उसने
उनके हाथों में 
राजा मिडास वाली
तिलस्मी छुअन दे दी;

तभी तो उनके हाथों को छूकर
बकवास भी एक दिलफ़रेब 
किस्सा हो जाता है
जिसे गुच्छे में मिल जाते हैं
सामईन,प्रकाशक, प्रोड्यूसर्स 
और भांति भांति के क़दरदान।

तभी तो उनकी हाज़िरी 
उनके शैदाइयों की 
भारी नशिस्त पैदा कर देती है;

तभी तो शोहरतनवाज़ कैमरा
ख़ुद-ब-ख़ुद मुख़ातिब हो जाता है
उनकी ओर
और अख़बार मचल उठता है
उन्हें आगोश में भरने के लिए।

-पवन कुमार ।
शब्दार्थ:
शब-गज़ीदा:रात को समेटी हुई
नूर-अफशां:रोशनी बिखेरती
सुभग:सुंदर
नज़ीर:मिसाल
देरीना:पुराना
चपकलश:लड़ाई
शूलसिक्त:कांटों से भरे
बदबख्ति:दुर्भाग्य
मौजू:विषय
ख़ूबरू:सुंदर चेहरे वाली
महकूक:नौकर
अदबी:साहित्यिक
आरास्ता:सुसज्जित
नशेबोफराज़:ऊंची-नीची 
रहनुमा:भगवान,guide
दिलफ़रेब:दिल लुभाने वाला
सामईन:श्रोता
शैदाई:दीवाना
नशिस्त:जमावड़ा

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